लखनऊ: एक ही पार्टी समाजवादी पार्टी में रहते हुए एक दूसरे के धुर विरोधी रहे आजम खान और जयाप्रदा अब चुनावी मैदान में एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं. जयाप्रदा ने बुधवार को अपना नामांकन दाखिल किया और जनता के बीच पुरानी यादों को याद करते वक्त भावुक भी हों गईं. जब मैदान में उतरीं तो क्या अखिलेश क्या मायावती सबको आड़े हाथों लिया. जया प्रदा को पता है कि रामपुर का मुकाबला कड़ा है. इसलिए मुस्तैदी से जुट गई हैं और इस लड़ाई को रोचक भी बना दिया है. नामांकन वाले दिन ही जया प्रदा जनता के सामने रो पड़ीं. रामपुर में ख़ुद पर हुए हमले का ज़िक्र करते हुए उन्होंने इशारों-इशारों में अपने पुराने दुश्मन आजम खान पर हमला बोला. इससे पहले वो मंदिर गईं, पूजा-अर्चना की और फिर नामांकन दाखिल किया. कई साल बाद लौटीं हैं लेकिन कोई कसर नहीं छोड़ रहीं हैं. वैसे तो आजम खान और जया प्रदा की अदावत पुरानी है लेकिन चुनावी मैदान पर आईं तो कह दिया अब पहले वाली जया प्रदा नहीं हूं.
जयाप्रदा ने कहा एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘रामपुर नहीं छोड़ना चाहती थी, मजबूरी में छोड़ कर गई. मेरे ऊपर तेजाब से हमले की साजिश थी, मेरे ऊपर हमला हुआ था. मैंने गुनाह किया है तो मुझे सजा दीजिए, मैंने आपके विकाल के लिए जुल्म सहा है. आज मैं भी जिद्दी हूं. वो जयाप्रदा नहीं हूं जो रोते-रोते आपके लिए काम करती थी.’ राजनीति में जया प्रदा 25 साल की पारी खेल चुकी हैं. 1994 में एनटी रामाराव उन्हें तेलगुदेशम पार्टी में लाए. आंध्रप्रदेश से राज्यसभा सांसद चुनी गईं. फिर सपा में शामिल हुईं. 2004 और 2009 में सपा के टिकट पर सांसद चुनी गईं. 2010 में सपा ने उन्हें निकाल दिया. 2011 में वो अमर सिंह के राष्ट्रीय लोकमंच में शामिल हुईं. 2014 में RLD के टिकट पर बिजनौर से चुनाव लड़ा और हार गईं. बीजेपी उनकी पांचवीं पार्टी है. जयाप्रदा जब सपा में थीं तो सपा की तारीफ करतीं थी. अब पाला बदल लिया है तो सुर भी बदल गए हैं. जहां अखिलेश-मायावती पर निशाना साधा वहीं प्रधानमंत्री की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा, ‘सपा में थी तो अखिलेश ने मदद नहीं की. मायावती पर अफसोस होता है. मोदी को रोकने के लए अखिलेश के साथ खड़ी हैं.’