नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की एक और पीठ ने आज सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया। लेखक नवलखा को भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी बनाया गया है। उन्होंने अदालत में पुणे पुलिस द्वारा अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए याचिका दाखिल की हुई है। न्यायाधीश अरुण मिश्रा, विनीत शरण और एस. रवींद्र भट्ट की तीन जजों की बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए मामला आया। न्यायमूर्ति भट्ट ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिसके बाद अदालत ने यह मामला दूसरी पीठ के पास भेज दिया। यह तीसरी बार है, जब किसी न्यायाधीश ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। एक अक्टूबर को न्यायाधीश एन.वी. रमन, बी.आर. गवई और आर. सुभाष रेड्डी की तीन सदस्यीय पीठ ने नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इससे पहले प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भी इस मामले की सुनवाई से खुद को हटा लिया था। बंबई हाईकोर्ट ने 13 सितंबर को नवलखा की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने पुणे पुलिस द्वारा दायर एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। नवलखा पर पिछले साल की शुरुआत में नक्सलियों से संपर्क रखने और भीमा-कोरेगांव व एल्गर परिषद के मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। बंबई हाईकोर्ट द्वारा याचिका खारिज कर दिए जाने के तुरंत बाद महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। यह कदम हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ नवलखा की अपील के बाद उठाया गया। इस याचिका का मतलब है कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना आदेश पारित नहीं कर सकती। पुणे पुलिस ने नवलखा और नौ अन्य मानव अधिकार व नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं को भारत के विभिन्न हिस्सों से गिरफ्तार किया था। उनकी गिरफ्तारी 31 दिसंबर, 2017 को भीमा-कोरेगांव में एल्गर परिषद की बैठक आयोजित करने के आरोप में की गई। एल्गर परिषद के अगले ही दिन एक जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव में जातीय दंगे व हिंसा शुरू हो गई थी। इसके अलावा इन कार्यकर्ताओं पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा-माओवादी) के साथ कथित संबंध रखने व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या कर चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप है।
गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट की एक और पीठ ने किया किनारा
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