लखनऊ: सर्च इंजन गूगल ने कहा है कि वह सिस्को व जेनेसिस समेत कई भागीदारों के साथ मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित तकनीक विकसित कर रहा है. इसका मकसद कॉल सेंटरों में एआई तकनीक के जरिए कामकाज चलाना है. यानि जब कोई कस्टमर कॉल सेंटर में कॉल करेगा तो एआई तकनीक के जरिए कॉल उठेगी और बातचीत होगी. धीरे-धीरे ये तकनीक कॉल सेंटर में काम करने वाले लोगों की जगह ले लेगी.
इस सॉफ्टवेयर को ‘कांटैक्ट सेंटर एआई’ कहा जाता है जो ‘वर्चुअल एजेंट्स’ स्थापित करेगा. ये एजेंट ग्राहक को कॉल सेंटर से कनेक्ट करते समय फोन उठाने कर शुरुआती बातचीत करेगा. गूगल के मुख्य वैज्ञानिक फेई-फेई ली ने क्लाउड नेक्स्ट कांफ्रेंस के दौरान बताया कि अगर ग्राहक कुछ ऐसा पूछता है, जो एआई नहीं बता पाता तो वह स्वचालित रूप से किसी मनुष्य को कॉल फॉरवर्ड कर देगा. उन्होंने बताया कि हमारा मुख्य लक्ष्य एक कांटैक्ट सेंटर के कर्मी को साथ ही उन पर भरोसा करनेवाले ग्राहकों को सशक्त बनाना है.
एआई का अर्थ मानव की जगह मशीनों से स्मार्ट तरीके से काम लेने से है. यानी मशीनों को इतना दक्ष बनाया जाए कि वह स्मार्ट तरीके से मानव की तरह दायित्वों का निर्वहन कर सकें. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को करंट एप्लीकेशन के रूप में समझा जाना चाहिए. यानी एक ऐसा विचार जिसके माध्यम से मशीनों तक डेटा को पहुंचाया जाए और वे खुद ही इस तरह सीख सकें.
इस साल मार्च में अमेरिकी संसद कांग्रेस में एक बिल लाया गया था, जिसके तहत विदेश (भारत में) में बैठे कॉल सेंटर के कर्मचारियों को न सिर्फ अपनी लोकेशन बतानी होगी और ग्राहकों को अधिकार देना होगा कि वे अमेरिका में सर्विस एजेंट को कॉल ट्रांसफर करने को कह सकें. ओहायो के डेमोक्रेट सेनटर शेरॉड ब्राउन ने इस बिल को पेश किया था. बिल में उन कंपनियों की एक सार्वजनिक सूची तैयार करने का प्रस्ताव था, जो कॉल सेंटर की नौकरियां आउटसॉर्स कर सकती हैं. साथ ही, इसमें उन कंपनियों को फेडरल कॉन्ट्रैक्ट्स में प्राथमिकता दिए जाने का भी प्रस्ताव है, जिन्होंने ये नौकरियां विदेशों में नहीं भेजी हैं. अमेरिका में कई ऐसी कंपनियां हैं, जिन्होंने पूरे देश में कॉल सेंटर बंद किए और भारत या मेक्सिको में शुरू किए हैं. बड़े पैमाने पर जॉब आउटसोर्सिंग के चलते अमेरिका में नौकरियों पर संकट छा गया.