उत्तराखंड: प्रदेश की नदियों में उप खनिज की निकासी के लिए भी राह बनती दिख रही है। सितंबर माह में ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की ओर से नदियों की मैपिंग की जाएगी। इसके साथ ही अब प्रदेश में एक हेक्टेयर तक के वन भूमि हस्तांतरण के मामलों में क्षेत्रीय कार्यालय से ही अनुमति मिल जाएगी। इसी के साथ क्षतिपूर्ति पौधरोपण के लिए राजस्व भूमि खोजने की परेशानी से भी निजात मिलने के आसार हैं। शनिवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने यह जानकारी दी। केंद्रीय वन मंत्री के मुताबिक इसरो की ओर से नदियों की मैपिंग में नदियों में जमा खनिज के बारे में भी पता लगेगा।इसके बाद इस उप खनिज की वैज्ञानिक और पारदर्शी तरीके से निकासी की कार्यवाही भी की जाएगी। प्रदेश में नदियों में खनन को राजस्व का बड़ा स्रोत माना जाता है, लेकिन वन क्षेत्र की नदियां होने और अन्य कारणों से नदियों में खनिज की निकासी नहीं हो पाती। प्रदेश सरकार का कहना है कि इससे नदियों का तल ऊंचा हो रहा है और निचले इलाकों को बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश सरकार को एक और राहत भूमि हस्तांतरण के मामले में मिल सकती है। केंद्रीय वन मंत्री के मुताबिक एक हेक्टेयर तक की वन भूमि हस्तांतरण के मामलों में क्षेत्रीय कार्यालय को फैसला करने का अधिकार दे दिया गया है। इससे भूमि हस्तांतरण के मामलों में तेजी आएगी।
केदारनाथ आपदा के बाद पांच हेक्टेयर तक की वन भूिम के हस्तांतरण का अधिकार प्रदेश को दिया गया था, लेकिन अब यह अधिकार केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में निहित है। केंद्रीय वन मंत्री के मुताबिक क्षतिपूर्ति के तहत प्रदेश के निमभन वनों मेें पौधरोपण का अधिकार भी दिया जा रहा है। अभी तक क्षतिपूर्ति पौधरोपण वन भूमि से इतर क्षेत्रों में करनी होती है। राजस्व भूमि की कमी के कारण कई बार प्रदेश से बाहर के क्षेत्रों में क्षतिपूर्ति वनीकरण किया जा रहा है। केंद्रीय वन मंत्री ने कहा कि एक हजार से ऊपर की ऊंचाई के क्षेत्रों में पेड़ों के पातन का अधिकार राज्य को देने पर भी काम किया जा रहा है। कैंपा में 30 सितंबर के बाद भी बजट को खर्च करने की अनुमति दी जा रही है।