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कृषि कानूनों को निरस्त करना सत्ता के अहंकार की हार: शिवसेना

मुंबई। शिवसेना ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की केंद्र की घोषणा को शनिवार को ”सत्ता के अहंकार की हार” बताया और कहा कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश और पंजाब में आगामी विधानसभा चुनावों में हार के डर से ऐसा किया। पार्टी ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इन कानूनों को वापस लेने का फैसला किसानों की एकता की जीत है।

इसमें कहा गया है कि यह ”सदबुद्धि” भाजपा को हाल में 13 राज्यों में हुए उपचुनावों में मिली हार का नतीजा है। शिवसेना ने कहा, ”केंद्र सरकार ने विरोध की आवाज दबायी और संसद में तीन कृषि कानूनों को पारित कर दिया। केंद्र ने किसानों के प्रदर्शन को पूरी तरह नजरअंदाज किया। प्रदर्शन स्थल पर पानी और बिजली की आपूर्ति काट दी गयी। संघर्ष के दौरान किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी और आतंकवादी तक कहा गया।”

उसने कहा कि इसके बावजूद किसान कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग से हटे नहीं। प्रदर्शनों के दौरान 550 किसानों की मौत हो गयी। एक केंद्रीय मंत्री के बेटे ने लखीमपुर खीरी में अपने वाहन से किसानों को कुचल दिया लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी मौत पर शोक भी नहीं जताया।

संपादकीय में कहा गया है, ”यह अहसास होने के बाद कि किसान अपना प्रदर्शन खत्म नहीं करेंगे और उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में भाजपा की हार को भांपते हुए मोदी सरकार ने कानूनों को निरस्त करने का फैसला लिया। यह किसान एकता की जीत है।”

महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ दल ने कहा कि ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ हमें सिखाती है कि आखिरकार अहंकार की पराजय होती है लेकिन फर्जी हिंदुत्ववादी यह भूल गए हैं और उन्होंने सच तथा न्याय पर हमला कर दिया जैसे कि रावण ने किया था। उसने कहा कि कम से कम भविष्य में केंद्र को ऐसे कानून लाने से पहले अहंकार को परे रखना चाहिए और देश के कल्याण के लिए विपक्षी दलों को भरोसे में लेना चाहिए। उसने लोगों से अन्याय और निरंकुशता के खिलाफ एकजुट रहने का अनुरोध किया।

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