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कांग्रेस के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार ने CAA की संवैधानिकता को केरल के बाद सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

लखनऊ। कांग्रेस के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार ने 16 मार्च दिन सोमवार को नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की।

राजस्थान सरकार ने कहा कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत और संविधान में प्रदत्त समता और जीने के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

केरल के बाद राजस्थान दूसरा राज्य है जिसने नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिये संविधान के अनुच्छेद 131 का सहारा लेकर शीर्ष अदालत में वाद दायर किया है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत केन्द्र से विवाद होने की स्थिति में राज्य सीधे शीर्ष अदालत में मामला दायर कर सकता है।

राज्य सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को संविधान के प्रावधानों के इतर और शून्य घोषित करने का अनुरोध किया है। नागरिकता संशोधन कानून, 2019 में प्रावधान है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए अल्पसंख्यक हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है।

अधिवक्ता डी के देवेश के जरिए दायर याचिका में कहा गया है, ”एक फैसला और आदेश दें कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के साथ-साथ धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। इसलिए 2019 की अधिनियम संख्या 47 (सीएए) को संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत शून्य घोषित किया जाए।”

संविधान के अनुच्छेद 13 जिसके जरिए सीएए को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है, उसमें कहा गया है कि कोई भी कानून जो मूल अधिकारों से असंगत हो या उनका अल्पीकरण करता हो उसे उस हद तक असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है, जहां तक वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

याचिका में कहा गया है कि सीएए को भारत के संविधान के प्रावधानों से इतर घोषित किया जाए। इसके अलावा याचिका में कहा गया है कि पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) संशोधन नियमावली, 2015 और विदेशी (संशोधन) आदेश को संविधान से इतर और शून्य घोषित किया जा सकता है।

याचिका में कहा गया है कि संशोधित पासपोर्ट नियमावली और विदेशी आदेश ‘वर्ग कानून है जो व्यक्ति की धार्मिक पहचान पर आधारित है, जिससे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। इसे अदालत ने संविधान का बुनियादी ढांचा माना है।

इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुये उच्चतम न्यायालय में अब तक 160 से अधिक याचिकायें दायर की जा चुकी हैं। इससे पहले, माकपा नीत केरल सरकार उच्चतम न्यायालय में सीएए को चुनौती देने वाली पहली राज्य सरकार बन गई थी। केरल विधानसभा ने ही सबसे पहले इस अधिनियम के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था।

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