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उधार के उम्मीदवारों पर दांव, ज्यादा सीटों पर जीत के लिए पार्टियां दूसरे दलों से आये नेताओं को उतार रहीं मैदान में

कोलकाता: चाहे केंद्र की सत्तारूढ़ दल भाजपा हो, या राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल. दोनों ने ही इस बार राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से अधिकांश पर जीत सुनिश्चित करने के लिए दलबदल के जरिये पार्टी में शामिल हुए ‘उधार’ के उम्मीदवारों पर अपना दांव लगाया है.राज्य में एक दल से दूसरे दल में जाने वाले नेताओं का आलम है यह कि 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 44 थी, जो वर्तमान में घटकर 26 रह गयी है. 18 विधायकों ने तृणमूल का दामन थाम लिया है. हालांकि दलों व आलाकमान के पैतरों से पार्टी के पुराने कार्यकर्ता परेशान और हैरान हैं. तृणमूल कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर भाटपाड़ा से तृणमूल कांग्रेस के विधायक ने पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी और भाजपा में शामिल हो गये. भाजपा ने उन्हें बैरकपुर लोकसभा केंद्र से उम्मीदवार भी बना दिया है.

बगावत के स्वर केवल तृणमूल में ही नहीं उठ रहे, भाजपा ने कूचबिहार में दो माह पहले शामिल हुए तृणमूल के निशीथ अधिकारी को अपना उम्मीदवार बनाया है. इसके विरोध में स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यालय में जमकर हंगामा मचाया और अधिकारी को पार्टी उम्मीदवार मानने से इनकार कर दिया.हाशिये पर गये पुराने क्षुब्ध कार्यकर्ताओं से पार्टियां परेशान तो हैं, लेकिन वे इन्हें बहुत ज्यादा महत्व देने से इनकार कर रही हैं. प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि भाजपा राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है. लोगों को लग रहा है कि बंगाल में परिवर्तन होगा, तो अब अधिक से अधिक लोग भाजपा से जुड़ना चाहते हैं, लेकिन उम्मीदवार को किसी एक को ही बनाया जा सकता है.

उम्मीद है कि पार्टी कार्यकर्ता इसे समझेंगे. राजनीतिक विश्लेषक स्वपन मुखर्जी का कहना है कि चाहे वह भाजपा हो या तृणमूल कांग्रेस, दोनों पर ही दबाव है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 42 में से 23 सीटों पर जीत हासिल करने का टार्गेट दिया है, तो तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने 42 में से 42 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है. वैसे बंगाल की राजनीति के लिए ‘पालाबदल’ या ‘दलबदल’ कोई नयी बात नहीं है. राज्य में तृणमूल कांग्रेस द्वारा 34 सालों से सत्तारूढ़ वाममोर्चा को हराने में ‘दलबदल’ की बड़ी भूमिका थी. लंबे समय तक सत्ता में रहे वामपंथियों ने तृणमूल का दामन थाम लिया था. आज वे तृणमूल के हो गये हैं. ‘लाल तृणमूल’ और ‘हरा तृणमूल’ जैसे जुमले बंगाल में काफी लोकप्रिय हैं. ‘लाल तृणमूल’ वह हैं, जो माकपा से तृणमूल में आये हैं और ‘हरा तृणमूल’ वह जो तृणमूल के पुराने कार्यकर्ता हैं. तृणमूल के पुराने कार्यकर्ताओं का आरोप है कि माकपा के डंडे उन्होंने भी खाये थे, लेकिन आज सत्ता का सुख पुराने वामपंथी कैडर जो आज तृणमूल में हैं, वे ही भोग रहे हैं. भाजपा राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है. पश्चिम बंगाल में पहले भाजपा को उम्मीदवार नहीं मिलते थे, लेकिन अब हर कोई भाजपा का उम्मीदवार बनना चाहता है.

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