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इस बूटी के दम पर चीन बना सुपरपॉवर…

देहरादून। उत्तराखंड में ‘मशरूम गर्ल’ के नाम से मशहूर दिव्या रावत ने सालों के अथक प्रयास के बाद अपनी लैब में कीड़ा जड़ी को विकसित (कल्टीवेट) कर लिया है। इसका इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है। कीड़ा जड़ी अक्सर हिमालय में पायी जाती है। कीड़े के कैटरपिलर्स पर उगने वाली इस जड़ी को पाना बेहद मुश्किल है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तस्करी के जरिये पाई जाने वाली इस औषधि की कीमत 16 से लेकर 20 लाख रूपए प्रति किलो है।

लैब में कीड़ा जड़ी के विकसित करने की बात पर यकीन करना भले ही असंभव लग रहा हो लेकिन दिव्या की इस नई खोज ने वैज्ञानिक स्तर पर भी एक नई उपलब्धि हासिल की है। दिव्या ने कहा कि ”इससे पहले भारत में कोई भी उद्यमी लैब में कीड़ा जड़ी को कल्टीवेट नहीं कर पाया है और वह इसे विकसित करने वाली पहली हैं”।

दिव्या का कहना है कि “कीड़ाजड़ी की प्रजाति Cordycep Millitaris भी उसी तरह के वैज्ञानिक औषधिक गुणों से भरपूरर है जैसे Cordycep sinesis या यारसगांभू”।

दिव्या ने अपनी लैब में कीड़ाजड़ी की जिस प्रजाति को विकसित किया है उसका नाम Cordycep Millitaris है।

दरअसल कीड़ाजड़ी की कई प्रजातियां होती हैं। इसी तरह Cordycep Sinensis भी कीड़ाजड़ी की एक प्रजाति है जिसे यारसागंबू भी कहा जाता है। दिव्या ने जिस प्रजाति को विकसित किया है उसका इस्तेमाल भी मेडिसिन के रूप में किया जाता है। दिव्या के अनुसार इंटरनेशनल मार्केट में कीड़ाजड़ी की इस प्रजाति की कीमत तकरीबन 5 लाख के आसपास है।

कीड़ा जड़ी को विकसित करने के लिए दिव्या ने थाईलैंड के जाने माने वैज्ञानिकों के साथ कल्टीवेशन की इस पूरी प्रक्रिया को समझा और अपने घर वापस लौटकर इसे अपनी लैब में दिन रात की कड़ी मेहनत के बाद सफलतापूर्वक विकसित कर डाला।

खिलाडियों के लिए है संजीवनी

लगभग 16 लाख रूपये प्रति किलो के भाव इंटरनेशनल मार्केट में मुश्किल से मिलने वाली कीड़ा जड़ी चीन के खेल वैज्ञानिकों के लिए गहन शोध का विषय रहा है। एक बड़े न्यूज़ चैनल ने भी खुलासा किया है कि चीन के खिलाडियों की जबरदस्त शारीरिक क्षमता के पीछे कीड़ा जड़ी अहम अमृत औषधि है।

भारत में डेढ़ दशक पूर्व तक इसकी जानकारी किसी को नहीं थी। तस्कर इसे चुपचाप निकालकर नेपाल के रास्ते चीन की मंडी तक पहुंचा रहे थे। इसका खुलासा उस समय हुआ जब 1998 में पिथौरागढ़ और नेपाल की सीमा पर भालू की पित्ती के तस्करों की तलाशी के दौरान दो नेपाली व्यापारियों से यारसा गंबू बरामद हुआ। उस समय इसका अंतर्राष्ट्रीय मूल्य 50 हजार रुपये प्रति किलो था।

कुछ वर्ष पहले तक जहाँ ये फंगस चार लाख रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता था, वही अब इसकी क़ीमत आठ से 10 लाख रुपए प्रति किलोग्राम हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में सूखी हुए इस बूटी की कीमत करीब 60 लाख रुपए है।

कीड़ा जड़ी एक फंगस है। इसमें प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं। ये तत्काल रूप में ताक़त देते हैं और खिलाड़ियों का जो डोपिंग टेस्ट किया जाता है, उसमें ये पकड़ा नहीं जाता। चीनी –तिब्बती परंपरागत चिकित्सा पद्धति में इसके और भी उपयोग हैं। फेफड़ों और किडनी के इलाज में इसे जीवन रक्षक दवा माना गया है।

दिव्या की सोंच

एमिटी यूनिवर्सिटी सोशल वर्क की पढ़ाई कर दिव्या ने मशरूम उगाकर और इसे उगाने का प्रशिक्षण देकर पहाड़ की कई महिलाओं को रोजगार से जोड़ा है। दिव्या कहती है कि आज मशरूम उगाने के प्रशिक्षण के लिए देश के कई कोनों से लोग उनसे संपर्क कर रहे हैं। दिव्या अपने साथ कई महिलाओं को रोज़गार देना चाहती हैं। दिव्या कहती हैं, “मैंने लोगों को बताने के बजाय खुद करके दिखाया जिससे उनका विश्वास बढ़ा।” उत्तराखंड सरकार ने दिव्या के इस सराहनीय प्रयास के लिए उसे ‘मशरूम की ब्रांड एम्बेसडर’ घोषित किया।

राष्ट्रपति ने भी किया सम्मानित

इसी साल आठ मार्च को महिला दिवस के मौके पर राष्ट्रपति ने दिव्या को सम्मानित किया। पहाड़ों पर मशरुम 150 से 200 रुपये में फुटकर में बिकता है। ये लोग अब सर्दियों में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों में मिल्की मशरूम का उत्पादन करते हैं। बटन मशरूम एक महीने में ओएस्टर 15 दिन में और मिल्की मशरूम 45 दिन में तैयार हो जाता है।

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