नई दिल्ली: आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी की नजर उन राज्यों पर ज्यादा है, जहां लोकसभा की सीटें अधिक हैं. भाजपा उन राज्यों पर भी ज्यादा फोकस कर रही हैं, जहां भाजपा का कभी प्रभुत्व नहीं रहा. इसी रणनीति के तहत पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सहित भाजपा के दिग्गज नेता अभी सेबंगाल में रैलियां करके अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं. यूपी और महाराष्ट्र के बाद बंगाल तीसरे नंबर पर हैं, जहां सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं. भाजपा नेताओं की इन रैलियों को लेकर कड़ी मशक्कत भी करनी पड़ रही है, क्योंकि वहां की टीएमसी सरकार कभी रैलियों को मंजूरी नहीं देती तो कभी भाजपा नेताओं के हेलीकॉप्टर को लैंड करने की इजाजत नहीं देती. ऐसे में भाजपा के स्टार प्रचारकों में शामिल यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को दो रैलियां मोबाइल फोन पर संबोधित करनी पड़ी थी. वहीं मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान को हेलीकॉप्टर की बजाय सड़क के रास्ते रैली स्थल तक पहुंचना पड़ा. भाजपा को टीएमसी से दो-दो हाथ करना पड़ रहा है. हालांकि, भाजपा भी टीएमसी के आगे झुकती हुई नहीं दिख रही है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रथयात्रा को मंजूरी नहीं मिलने पर भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने भी मंजूरी देने से मना कर दिया था. आखिर भाजपा बंगाल को लेकर इतनी बैचेन क्यों हैं? इसके पीछे ये पांच बड़ी वजह हो सकती हैं. 1. यूपी-महाराष्ट्र के बाद सबसे ज्यादा सीटें
महाराष्ट्र और यूपी के बाद पश्चिम बंगाल में ही सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं. यूपी में 80 तो महाराष्ट्र में 48 सीटों के बाद तीसरे नंबर पर बंगाल में 42 सीटें हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी को 34 सीटें मिली थीं, वहीं भाजपा भी दो सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थीं. कांग्रेस को केवल चार सीटों पर ही जीत मिली थी, कांग्रेस को यहां दो सीटों का नुकसान हुआ था. वहीं वाम दलों की बात करें तो उन्हें 13 सीटों का नुकसान हुआ था, वे दो ही सीटों पर जीत दर्ज कर पाए.
2. आंकड़ों ने बढ़ाया हौसला
2014 में बंगाल में भाजपा को मिले वोट फीसद से भी पार्टी का हौसला बढ़ा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को करीब 17 फीसदी वोट मिले थे, जो कि पिछली बार से करीब 11 फीसदी ज्यादा थे. वहीं कांग्रेस और वामदलों का वोट फीसदी घटा था. हालांकि, टीएमसी का वोट फीसद भी करीब आठ फीसदी बढ़ा था. टीएमसी को 2014 में 39 फीसदी वोट मिला था. भाजपा को 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में केवल 10 फीसदी वोट ही मिल पाए. लेकिन इसके अलावा एक गौर करने वाली बात यह भी है कि विधानसभा चुनाव के बाद यहां हुए उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और वाम दलों को पछाड़ दिया और वह टीएमसी के बाद दूसरे नंबर पर रही.
3. टीएमसी-कांग्रेस का कमजोर पड़ना
बंगाल में कभी मजबूत रहे वाम दलों और कांग्रेस पार्टी के कमजोर पड़ने के बाद भाजपा अपने लिए आगामी लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें देख रही हैं. 2011 में टीएमसी के सत्ता में आने के बाद से वामदल राज्य में काफी पीछे रह गए, वहीं पिछले कुछ चुनाव से कांग्रेस का प्रदर्शन भी गिरता जा रहा है. ऐसे में भाजपा बंगाल में खुद की राह आसान देख रही है. भारतीय जनता पार्टी वहां खुद के टक्कर में केवल टीएमसी को देखकर रणनीतियां बना रही हैं. यह भाजपा नेताओं की रैलियों में भी देखने को मिल रहा है, वहां भाजपा नेता केवल टीएमसी और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार को ही निशाने पर ले रहे हैं.
4. ममता को धराशायी करना मकसद
अगर ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 जैसा प्रदर्शन दोहराती है तो वह विपक्षी दलों के गठबंधन में किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है. अभी 34 सांसदों के साथ टीएमसी लोकसभा में चौथी सबसे बड़ी पार्टी है. 2014 में टीएमसी से ज्यादा भाजपा को 282, कांग्रेस को 44, एआईएडीएमके को 37 सीटें मिली थीं. ऐसे में संभावना है कि इस बार भी टीएमसी लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है.
5. विपक्षी एकजुटता को तोड़ना
नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों में ममता बनर्जी की गिनती गठबंधन में सूत्रधार की भूमिका निभाने वाले नेताओं में की जाती है. मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हुए विपक्षी दल चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते हैं, ऐसे में भाजपा की कोशिश विपक्षी दलों के सूत्रधारों को धराशायी करने की है, ताकि विपक्षी एकता कमजोर पड़ जाए.
आखिर भाजपा बंगाल को लेकर इतनी बैचेन क्यों? जानिए क्या है इसके पीछे की वजह
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