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अस्तित्व के ख़तरे से जूझती लोजपा…

– सतीश साह

एक वक्त बिहार की राजनीति के सबसे बडी धुरी पासवान और उनकी पार्टी आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
रामविलास पासवान का जन्म 1946 में बिहार के ख़गड़िया जिलें के एक गरीब दलित (दुसाध) परिवार में हुआ । 1969 में बिहार पुलिस में डीएसपी के पद पर चयनित हुए। किंतु समय और क़िस्मत ने उनके लिए कुछ ख़ास आरक्षित कर रखा था ।
अलग-अलग सरकारों में केंद्रीय मंत्री भी बने और आज भी पिछले 6 वर्षों से भाजपा सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री के पद पर हैं । रेल, रसायन और उर्वरक, स्टील, कोयला आदि महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री रहे । बिहार के वैशाली जिले के ज़िला मुख्यालय हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से कई बार सांसद रहे । वर्तमान में वे राज्य सभा सदस्य हैं और हाजीपुर से उनके अनुज पशुपतीनाथ पारस सांसद हैं । हाजीपुर संसदीय क्षेत्र के लोग मानते हैं कि पासवान के रेल मंत्री रहते हुए ही हाजीपुर को पूर्व मध्य रेल (ई सी आर) के मुख्यालय की सौग़ात मिला । 
रामविलास पासवान को अधिकतर लोग एक बेहतर मौसम वैज्ञानिक मानते हैं । केंद्र में सरकार किसी की बने अपने पासवान मंत्री बनते ही हैं। 
वर्ष 2005 का एक वाक्या मुझे आज भी याद है विधानसभा का आम चुनाव हुआ । नतीजा त्रिकोणीय रहा और किंगमेकर के रूप में पहली बार उभर कर आयी लोक जनशक्ति पार्टी । एक तरफ़ जनता दल (यू) और भाजपा का गठबंधन और दूसरी तरफ़ लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल । पासवान जिसको चाहते वह सरकार बना सकती थी । किंतु, रामविलास पासवान ने अति विश्वास में आकर किसी को सपोर्ट करने से मना कर दिया और तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा दिया । आज़ादी के बाद पूरे देश में मात्र एक बिहार ही ऐसा प्रदेश है जहां अब तक शायद सबसे अधिक बार राष्ट्रपति शासन लगा है। मुझे ऐसा आज भी महसूस होता है कि 2005 में पासवान के इस निर्णय से उनकी लोकप्रियता का ग्राफ़ कुछ नीचे गिरा क्यों कि उसके बाद बिहार में उनकी पार्टी का प्रदर्शन किसी भी चुनाव में अच्छा नहीं रहा । लोजपा की गिरती लोकप्रियता और अपने अस्तित्व की रक्षा में वर्ष 2014 में भाजपा के साथ गठबंधन होता है और लोकसभा चुनाव में गठबंधन के अंतर्गत मिले कोटे में लोजपा का प्रदर्शन काफ़ी बेहतर रहता है, किंतु इस प्रदर्शन के पीछे का कारण सभी जानते हैं कांग्रेस पार्टी और तत्कालीन केंद्र सरकार के कुशासन, भ्रष्टाचार, कालाधन के प्रति देशव्यापी ग़ुस्सा और दूसरा सबसे अहम प्रधानमंत्री मोदी की अतिलोकप्रियता ।
लेकिन, उसके अगले वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में ही लोजपा और पासवान को बिहार की जनता ने कुछ चंद सीटों पर समेट दिया । क्यों कि पिछले चुनाव में जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल का गठबंधन साथ लड़ा और सत्ता पाने में सफल रही । यह एक अलग बात है कि बिहार को आर्थिक संकट से उबरने के लिए नीतीश को केंद्र सरकार की मदद चाहिये थी और जनता दल (यू) पुनः भाजपा के साथ मिलकर चला रही है । 
इस वर्ष के अंत तक बिहार विधानसभा का चुनाव है लेकिन फिर पूरी पिक्चर से लोजपा ग़ायब है । न तो संगठन मज़बूत हैं और ना ही बिहार की सत्ता में वैसी हिस्सेदारी । रामविलास पासवान के बेटे और सांसद चिराग़ पासवान अब बिहार की राजनीति में अपने पिता के उस विरासत को पुनः मज़बूत करने की दिशा में जद्दोजहद कर रहे हैं। वे एनडीए में अपना मज़बूत हिस्सा चाहते हैं, लेकिन नीतीश के दबाव में वैसा होता नहीं दिख रहा है । नीतीश एक चतुर राजनेता हैं वे कभी नहीं चाहेंगे कि लोजपा की स्थिति बिहार में महबूत हो । रामविलास की सेहत भी उनका साथ नही दे रही है। 
भाजपा के भरोसे लोजपा को बिहार विधानसभा चुनाव में शायद कुछ सीटें मिलें भी । किंतु, लोजपा कभी भी वैसी स्थिति में नहीं आ सकती जैसे कभी रामविलास का बिहार की राजनीति में क़द था ?
यक़ीन मानिये, आगामी बिहार विधानसभा का चुनाव शायद न केवल बिहार की नई दशा और दिशा तय कर सकता है बल्कि मुझे लगता है बिहारी इस बार राजनैतिक दलों का दशा और दिशा भी बदल देगा । 
लोजपा प्रमुख चिराग़ पासवान को बिहार और बिहारियों के आईडिया को लेकर आगे बढ़ने की ज़रूरत है…तभी अस्तित्व की इस लड़ाई में कुछ सम्भव है !चिराग़ युवा हैं युवाओं की आवाज़ बने, ध्वस्त शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर, सामाजिक तानाबाना को मज़बूत करने एक आवाज़ बने। कैसे प्रवासी मज़दूरों और युवाओं को उनके घर में रोज़गार मिले इसका एक ब्लू प्रिंट लेकर जनता के बीच जायें । तभी कुछ सम्भव है, कब तक किसी राष्ट्रीय पार्टी के सहारे अपने मंसूबों को सिद्ध करेंगे । 
(लेखक के निजी विचार हैं)

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