नई दिल्ली: गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का मानना है कि संसद में तीन तलाक संबंधी विधेयक पारित होने से यह साफ हो गया है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में अब ‘विपक्ष को एकजुट करने की क्षमता’ नहीं बची है. संसद में विधेयक के पारित होने को कई मायनों में महत्वपूर्ण बताते हुए शाह ने कहा कि शाहबानो प्रकरण के समय तीस साल पहले कांग्रेस का जो रुख था वही रुख इस बार भी संसद में देखने को मिला है. शाह ने शनिवार को कुछ अखबारों में प्रकाशित अपने लेख में टिप्पणी की है कि तीन तलाक संबंधी विधेयक पारित होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम इतिहास में राजा राम मोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे ‘समाज सुधारकों’ की श्रेणी में रखा जाएगा. गृह मंत्री ने अपने लेख में कहा है कि 30 जुलाई भारत के संसदीय इतिहास में अहम पड़ाव है.
उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद तीन तलाक कानून प्रभाव में आ गया है और मुस्लिम महिलाओं को इस कुप्रथा के दंश से सरंक्षण मिलेगा.’ उन्होंने कहा कि इससे महिलाओं के सम्मान, स्वाभिमान और गरिमायुक्त जीवन के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता दिखी है. गृह मंत्री ने लेख में दावा किया, ‘एक तथ्य यह भी उभर कर सामने आया है कि विपक्षी दलों को एकजुट करने की कांग्रेस की क्षमता क्षीण हुई है.’ लेख में कहा गया है कि तीन तलाक कानून जनसरोकार तथा सामाजिक सुधार से जुड़ा विषय था, इसलिए कई गैर राजग दलों ने भी इस विधेयक के पारित होने में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सहयोग दिया. शाह के अनुसार, ‘आज से तीन दशक पूर्व एकबार यह अवसर आया था जब शाहबानो मामले में 400 से अधिक सांसदों वाली कांग्रेस पार्टी मुस्लिम महिलाओं को इस दंश से मुक्त करा सकती थी.
लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, मौलवियों और वोट बैंक की राजनीति के दबाव में (तत्कालीन) प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अदालत के आदेश के विपरीत फैसला लिया. बीजेपी अध्यक्ष ने लेख में कहा है कि आज के तीस साल पहले कांग्रेस का जो रुख था वही वोट बैंक की राजनीति का रुख इस बार भी संसद में हुई चर्चा और वोटिंग में देखने को मिला है जो ‘उसकी तुष्टिकरण की राजनीति का चरित्र दर्शाता है.’ गृह मंत्री ने कहा कि इस विधेयक ने कथित उदारवादियों की भी पोल खोल दी. लेख में उन्होंने कहा है कि महिला अधिकारों के लिए आए दिन आंदोलन करने वाले उदारवादी खेमे ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर या तो चुप्पी साध ली या इसका विरोध किया. इससे साबित होता है कि उनकी उदारवादिता राजनीति स्वार्थ से प्रेरित है.’ शाह ने कहा कि यह हमें समझना होगा कि तीन तलाक के खिलाफ महिलाओं ने लंबी लड़ाई लड़ी, वे किसी राजनीतिक दल से प्रभावित नहीं थीं,
बल्कि सामान्य महिलाएं थीं. केवल मुस्लिम महिलाओं के लिए सरकार की ओर से कदम उठाए जाने के विपक्ष के सवाल के जवाब में शाह ने कहा है कि इससे पूर्व अन्य धर्मों में भी आवश्यक सुधार किए गए हैं चाहे वह बाल विवाह का कानून हो, हिन्दू विवाह अधिनियम हो, दहेज़ प्रथा के विरुद्व कानून हो या ईसाई अधिनियम हो, इस तरह के सुधार सब धमों में किए जाते रहे हैं. तीन तलाक के मामले में दंड के प्रावधान को भी सही करार देते हुए शाह ने कहा कि पहले भी दिवानी मामलों में दंड का प्रावधान किया गया है. उल्लेखनीय है कि राज्यसभा में समुचित संख्या बल नहीं रखने वाली नरेन्द्र मोदी सरकार इस सप्ताह मंगलवार को कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों की आपत्तियों के बावजूद उच्च सदन में तीन तलाक संबंधी विधेयक को पारित कराने में सफल रही. लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित चुकी थी.