नई दिल्ली। काबुल पर तालिबानियों के कब्जे और अशरफ गनी सरकार के पतन के साथ ही अफगानिस्तान में भारत द्वारा निर्मित और निर्माणाधीन परियोजनाओं के भविष्य के साथ ही साथ इस देश को दी गई हजारों करोड़ की मदद के औचित्य को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं।
पिछले सात सालों के दौरान भारत सरकार ने अफगानिस्तान में विकास कार्यों के लिए लगभग 15 हजार करोड़ रुपये की सहायता प्रदान की है। साथ ही वहां बांधों से लेकर संसद भवन तक का निर्माण कराया है। जबकि सैकड़ों करोड़ की कुछ परियोजनाओं पर अभी काम चल रहा है।
तालिबानी शासन में इनका भविष्य क्या होगा, ये कोई नहीं जानता। विकास कार्यों के अलावा भारत सरकार ने अफगानिस्तान को अनेक प्रकार की मानवीय मदद से भी नवाजा है। इसमें अनाज से लेकर कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति तक शामिल है। यहां तक कि कोरोना के दो संकटपूर्ण बजटों में भी भारत ने अफगानिस्तान को 750 करोड़ रुपये की मदद पहुंचाई है। लेकिन अब इस उदारता के कूटनीतिक नफा-नुकसान का विश्लेषण होने लगा है।
फिलहाल तो तालिबानियों ने उम्मीद से इतर भारत द्वारा किए गए विकास कार्यों और मानवीय मदद की सराहना की है। जिसे बड़ी राहत के तौर पर लिया जा रहा है। लेकिन ये कहना मुश्किल है कि तालिबान कब तक अपने इस रुख पर कायम रहेंगे।
क्योंकि तालिबान के नेतृत्व में इस्लामिक अमीरात सरकार के गठन के बाद तालिबानियों का कट्टर धड़ा कभी भी शासन पर हावी हो सकता है और यदि ऐसा हुआ तो वे पिछले अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है तालिबान भारतीय निर्माणों को नुकसान पहुंचाने से नहीं चूकेंगे। खासकर अफगानिस्तान में पाकिस्तान और चीन की भारत विरोधी भूमिका और कुत्सित इरादों को देखते हुए इन संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में भारत अब तक इंफ्रास्ट्रक्चर एवं सामुदायिक विकास की 400 से अधिक छोटी-बड़ी परियोजनाएं पूरी कर चुका है। इसके अलावा अफगान छात्रों को एक हजार से ज्यादा छात्रवृतियां एवं फेलोशिप प्रदान की जा चुकी हैं। इतना ही नहीं, कोरोना संकट का सामना करने के लिए अफगानिस्तान को वैक्सीन की 5 लाख डोज भी भारत द्वारा भेजी जा चुकी हैं। अफगानिस्तान में भारत द्वारा पूरी की गई इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में सबसे बड़ी परियोजना सलमा बांध की है। जिस पर 1800 करोड़ रुपये की लागत आई है।
इसके अलावा 969 करोड़ रुपये की लागत वाली अफगान पार्लियामेंट बिल्डिंग का निर्माण भी भारत ने ही कराया है। इनके अतिरिक्त 187 करोड़ की लागत से दोषी व चरिकर में बना विद्युत सब स्टेशन, 39 करोड़ रुपये की लागत से स्टोर पैलेस का जीर्णोद्धार तथा मजार-ए-शरीफ नीली मस्जिद के लिए ग्लेज्ड टाइल प्लांट की स्थापना जैसे कार्य भी भारत की मदद से हुए हैं। इनसे इतर 445 करोड़ रुपये मूल्य का 1.1 लाख टन गेहूं तथा 2000 टन दालें तथा काबुल आइजीआइसीएच के लिए 17 करोड़ रुपये के मेडिकल उपकरण भी भारत की ओर से भेजे जा चुके हैं।
अफगानिस्तान में लगभग 350 करोड़ रुपये की 13 परियोजनाएं ऐसी हैं जिन पर अभी काम चल रहा है। इनमें सलमा बांध का कुछ बकाया काम, पार्लियामेंट बिल्डिंग के छोटे-मोटे कार्य, शहतूत बांध से संबंधित अतिरिक्त परीक्षण, कृषि विश्वविद्यालय का निर्माण, बंद-ए-अमीर से बामयान-याकवलांग राजमार्ग के बीच संपर्क मार्ग का निर्माण तथा मज़ार-ए-शरीफ एयरपोर्ट से काबुल चार सरक्का रोड के बीच सड़क का निर्माण जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर कार्य शामिल हैं।
इनके अतिरिक्त मानवीय मदद एवं सामुदायिक विकास परियोजनाओं पर भी अभी काम जारी है। इनमें 75 हजार टन गेहूं की सप्लाई, आइसीसीआर की 2000 तथा एएनडीएसएफ की 500 छात्रवृत्तियां तथा सामुदायिक विकास के कुछ कार्यों की गणना भी चालू परियोजनाओं में की जा सकती है।
चालू परियोजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण कार्य काबुल के नजदीक 286 डॉलर की लागत से बनने वाले शहतूत बांध का है। इसके बारे में सितंबर, 2017 में निर्णय हुआ था। जबकि भारतीय कंपनी वापकोस को इसके लिए सर्वे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने तक कंपनी के कर्मचारी सर्वे के काम में जुटे हुए थे। लेकिन अब इन्हें वहां से निकाला जा रहा है।