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अपना अंतिम बजट पेश करने के बाद फील्ड में उतरी मनोहर लाल सरकार, बाकी बना रहे रणनीति

हरियाणा : हरियाणा में लोकसभा चुनाव के लिए सियासी गतिविधियां तेज हो चुकी हैं। मनोहर लाल सरकार अपना अंतिम बजट पेश करने के बाद फील्ड में उतर आई है, अन्य दल अभी तक रणनीति बनाने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री खुद मोर्चा संभालते हुए राजनीतिक माहौल भाजपा के पक्ष में बनाने केलिए डटे हुए हैं। इनेलो ने भी हांसी रैली के जरिए शक्ति प्रदर्शन कर चुनावी हुंकार भरी है तो गुटों में बंटी कांग्रेस अभी कोई बड़ा शक्ति प्रदर्शन नहीं कर पाई है। हालांकि, जिलास्तर पर कांग्रेस नेताओं की रैलियां जारी हैं। हरियाणा में पीएम नरेंद्र मोदी ने फरवरी महीने में स्वच्छ शक्ति कार्यक्रम के जरिए कुरुक्षेत्र से लोकसभा चुनाव का शंखनाद किया था। इसके बाद हिसार में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी बूथ शक्ति केंद्रों का सम्मेलन कर चुके हैं। भाजपा बीते दिनों कोर ग्रुप की बैठक हरियाणा में अपनी चुनावी रणनीति को अंतिम रूप दे चुकी है।

उसी पर सरकार और संगठन आगे बढ़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव प्रभारी कलराज मिश्र संगठन और सरकार में पूरा तालमेल बैठाकर विरोधियों को मात देने के लिए व्यूह रचना कर रहे हैं। जिलों में सीएम और मंत्रियों के कार्यक्रम बदस्तूर जारी हैं। बूथ शक्ति केंद्रों के प्रभारियों व सदस्यों को चुनाव के लिए सक्रिय कर दिया गया है। टिकट आवंटन के लिए कोर ग्रुप संभावित प्रत्याशियों के नाम पर मंथन कर चुका है। दस में से छह से ज्यादा सीटों पर भाजपा अपने प्रत्याशी बदलने की तैयारी में है। कुरुक्षेत्र के अलावा, करनाल, रोहतक, हिसार, सिरसा, अंबाला, सोनीपत व महेंद्रगढ़ संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी बदले जा सकते हैं। सत्तारूढ़ भाजपा के चुनावी चक्रव्यूह को भेदना विपक्ष के लिए फिलहाल आसान दिखाई नहीं दे रहा।

सत्ता वापसी की आस लगाए बैठी कांग्रेस भी अब तक अपनी रणनीति को अंजाम नहीं दे पाई है। कांग्रेस ने भले ही जींद चुनाव के दौरान नए प्रभारी के तौर पर गुलाम नबी आजाद की नियुक्ति कर दी थी, लेकिन आजाद अभी तक दिल्ली में बैठकर ही हरियाणा की टोह ले रहे हैं। उन्होंने हरियाणा का रुख किया ही नहीं है। आजाद के लिए सबसे बड़ी चुनौती पूर्व सीएम हुड्डा और उनके समर्थक विधायकों को साधना है। हुड्डा गुट लंबे समय से प्रदेश नेतृत्व की मांग जोरशोर से उठाए हुए है। हुड्डा समर्थक विधायक सीधे तौर पर प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर को हटाने की मांग कर चुके हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया है कि प्रदेश में कांग्रेस हुड्डा को कमान मिलने पर ही सत्ता वापसी कर सकती है। वहीं, दूसरी ओर अशोक तंवर को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का वरद हस्त है। लोकसभा चुनाव के लिए किसी भी समय आचार संहिता लागू हो सकती है,

ऐसे में प्रदेशाध्यक्ष बदले जाने के आसार न के बराबर ही हैं। गुटों में बंटी कांग्रेस अभी तक चुनावी माहौल बनाने में नाकाम रही है। लोकसभा प्रत्याशियों को लेकर पैनल लिए जा चुके हैं, लेकिन फील्ड में एकजुट नजर न आने से कांग्रेस को नुकसान हो रहा है। परिवार और पार्टी के दोफाड़ होने से मुख्य विपक्षी दल  इनेलो को तगड़ा झटका लगा है। हालांकि, संगठन को नए सिरे से खड़ा करने में पार्टी जुटी हुई है। हांसी रैली से इनेलो ने शक्ति प्रदर्शन करते हुए चुनावी हुंकार भरी है, लेकिन जींद उपचुनाव में पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन खतरे की घंटी है। इनेलो के अनेक नेता व चार विधायक जननायक जनता पार्टी के साथ जा चुके हैं। जिससे पार्टी को नई सिरे से खुद को धरातल पर मजबूत करना पड़ रहा है।

बसपा के साथ इनेलो का गठबंधन जींद उपचुनाव के बाद टूट चुका है। ऐसे में इनेलो की पूरी आस अब पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के जेल से बाहर आने पर टिकी हुई है। जींद उपचुनाव के नतीजों व बसपा के किनारा करने के बाद इनेलो का झुकाव कहीं न कहीं भाजपा की ओर भी बढ़ा है। जननायक जनता पार्टी का उदय हरियाणा में चंद महीने पहले ही हुआ है। पार्टी का प्रदर्शन जींद उपचुनाव में चौंकाने वाला रहा। जजपा को आप का समर्थन प्राप्त था। पार्टी उम्मीदवार दिग्विजय चौटाला दूसरे स्थान पर रहे, जिससे जजपा में नए रक्त का संचार हुआ है। पार्टी ने अपने संगठन को लगभग खड़ा कर दिया है। लोकसभा चुनाव भी जजपा व आप के मिलकर लड़ने की संभावना अब भी बनी हुई है।

हालांकि, आप के प्रदेशाध्यक्ष नवीन जयहिंद अकेले लोकसभा व विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। आम आदमी पार्टी दिल्ली की तर्ज पर हरियाणा में संगठन को मजबूत करने में लगी हुई है। अरविंद केजरीवाल खुद हरियाणा पर फोकस कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि लोकसभा चुनाव में जजपा और आप क्या करिश्मा करती हैं। उधर, भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी और बसपा में हरियाणा में गठबंधन हो चुका है। दोनों दल पिछड़ा और दलितों मतदाताओं का समीकरण बनाकर चल रहे हैं। जजपा, आप, लोसुपा और बसपा चुनावी दंगल के नतीजों को रोचक बना सकती है।

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