(Agrahayana/Margshirsh Maas 2018) हिन्दू पंचांग के अनुसार हिन्दू वर्ष का नवा महीना अगहन, अग्रहायण या मार्गशीर्ष के नाम से जाना जाता है। इस मास को विशेष तौर पर मार्गशीर्ष एवं मगसर कहते हैं इस मास में शंख पूजा विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण को कार्तिक मास अति प्रिय हैं, इसलिए कार्तिक मास में उनकी पूजा का महत्व अत्यधिक है। मार्गशीर्ष मास को भगवान श्री कृष्ण का स्वंय रूप कहा जाता हैं। इसलिए इस मास में भगवान विष्णु और उनके अवतारों के पूजन का अधिक महत्व है। इस साल 2018 में 15 नवंबर, मंगलवार से मार्गशीर्ष यानि अगहन मास प्रारंभ हो चुका है। यह महीना 13 दिसंबर, मंगलवार तक रहेगा, यानि दिसंबर में ही अगहन माह खत्म हो जाएगा। इसलिए आपको शंख पूजा अवश्य करनी चाहिए।
इस महीने में शंख पूजन का विशेष महत्व है, किसी साधारण शंख को श्रीकृष्ण के पंचजन्य शंख के समान समझकर उसकी पूजा करनी चाहिए। शंख पूजन से जातक को सभी मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। आपको अगहन मास में शंख पूजा का महत्व बता देते हैं। दरअसल सभी वैदिक कामों में शंख को विशेष स्थान प्राप्त है। शंख का जल घर-वस्तुओं को पवित्र करने वाला होता है। सभी पूजन और हवन में शंख का प्रयोग मान्य है। पूजन हवन में आरती के बाद श्रद्धालुओं पर शंख से जल छिड़का जाता है। शंख को माता लक्ष्मी का प्रतीक कहा गया है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय निकले नौ रत्नों में शंख भी प्रकट हुआ था। शंख की पूजा से धन धान्य की प्राप्ति होती है।
अगहन मास में शंख पूजा विधि
पुराणों के अनुसार, अगहन मास में इस विधि से शंख पूजन करना चाहिए। शंख को लेकर उसमें देवता का वास मान पूरे विधि-विधान से पूजा करें। सभी सामग्री सहित पूजा आरंभ करें। वैसे ही शंख की पूजा करें जैसे आप किसी इष्ट को पूजते हैं। आपको बता दें कि अगहन मास में साधारण शंख की पूजा पंचजन्य शंख की पूजा के समान मान्य है। अगहन मास में शंख की पूजा सो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
अगहन मास में पंचजन्य पूजा मंत्र
त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे।
निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते।
तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:।
शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते॥