लखनऊ : प्रदेश भर के महिला संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के संदर्भ में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। उनका कहना है कि यह निर्णय महिलाओं के प्रति एक भेदभावपूर्ण विचारधारा को बढ़ावा दे रहा है कि महिलाएं झूठी हैं और भारतीय दंड संहिता की इस धारा के तहत अपने पति और सुसराल वालों पर निराधार और झूठे मामलें दाखिल कर रही हैं। यह इस तथ्य को पूरी तरह से अनदेखा करता है कि महिलाएं हर रोज दहेज के लिए प्रताड़ित की जाती हैं व दहेज के लिए पति व ससुरालवालों द्वारा की जाने वाली घरेलू हिंसा की शिकार हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण तीन का आकड़ा भी दर्शाता है कि हर तीन में से एक महिला घरेलू, शारीरिक या मानसिक हिंसा का शिकार होती है। उत्तर प्रदेश में घरेलू हिंसा के मामलों में यह निष्कर्ष निकलकर आया है कि घरेलू हिंसा महिलाओं के प्रति एक घातक हिंसा है जो कि उनके स्वतंत्र रूप से जीवन जीने के अधिकार का हनन करता है और उनके स्वास्थ्य व अन्य अधिकारों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
न्यायालय द्वारा इस निर्णय में पुलिस को निर्देशित किया गया है कि जब तक वास्तविक शारीरिक चोट या मृत्यु न हो जाये तब तक कार्यवाई न करें। एसी मानसिक यातनाएं और शारीरिक चोट जो कि प्रत्यक्ष नही हो सकती, उन्हें इस निर्णय में सम्मलित नहीं किया गया है जबकि भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए स्पष्ट रूप से मानसिक एवं शारीरिक दोनों तरह की हिंसा को शामिल करता है। प्रेस क्लब में एकजुट महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया।