
अशोक यादव, लखनऊ। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के दोषी सिविल राइट एक्टिविस्ट गौतम नवलखा ने मंगलवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है। एनआईए ने गौतम नवलखा से पूछताछ शुरू कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बड़े को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के सिलसिले में एक सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने का आदेश दिया था।
साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसके बाद समर्पण के लिए समय नहीं बढ़ाया जाएगा क्योंकि महाराष्ट्र में अदालतें काम कर रही हैं।
वहीं नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बड़े ने कोरोना वायरस महामारी का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय से बीते 8 अप्रैल को अनुरोध किया कि उन्हें भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने के लिए और समय दिया जाए।
कोर्ट ने 16 मार्च को इन कार्यकर्ताओं की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि यह नहीं कहा जा सकता कि उनके खिलाफ पहली नजर में कोई मामला नहीं बना है।
हालांकि न्यायालय ने इन कार्यकर्ताओं को जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने के लिए तीन सप्ताह का वक्त दिया था।
इससे पहले 16 मार्च को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने अग्रिम जमानत की अस्वीकृति के संबंध में यूएपीए के तहत प्रावधानों का हवाला देते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था।
बता दें कि पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव में 31 दिसंबर 2017 की हिंसक घटनाओं के बाद एक जनवरी, 2018 को गौतम नवलखा, आनंद तेल्तुम्बड़े और कई अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ माओवादियों से कथित रूप से संपर्क रखने के कारण मामले दर्ज किए थे।
हालांकि इन कार्यकर्ताओं ने पुलिस के इन आरोपों से इनकार किया था। वह एक जनवरी 2018 को वर्ष 1818 में हुई कोरेगांव-भीमा की लड़ाई को 200 साल पूरे हुए थे।
इस दिन पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव नाम के गांव में दलित समुदाय के लोग पेशवा की सेना पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत का जश्न मनाते हैं। इस दिन दलित संगठनों ने एक जुलूस निकाला था। इसी दौरान हिंसा भड़क गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।