सौरव गांगुली की अगुआई वाली भारतीय टीम वांडर्स में वंडर करने से चूक गई। खिताब की दहलीज पर पहुंची भारतीय टीम को फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों 125 रन की बड़ी हार मिली। ऑस्ट्रेलियाई टीम ने लगातार दूसरी और कुल तीसरी बार चैंपियन बनी। ऑस्ट्रेलिया ने कप्तान रिकी पोंटिंग (140*) और डेमियन मार्टिन (88*) के दम पर दो विकेट पर 359 रन बनाए। भारतीय टीम 39.2 ओवर में 234 रन ही बना पाई। वीरेंद्र सहवाग ने सर्वाधक 82 और राहुल द्रविड़ ने 47 रन बनाए। ऑस्ट्रेलियाई टीम पूरे टूर्नामेंट में अजेय रही। वहीं भारतीय टीम ने दो मैच गंवाए और दोनों ऑस्ट्रेलिया से।
साल 2003 के विश्वकप फाइनल में भारतीय फैन्स के दिल उस वक्त टूट गए थे, जब टीम इंडिया 20 साल बाद विश्वकप खिताब से मात्र एक कदम दूर रह गई। किसी को भरोसा नहीं हो रहा था टीम को जीतना सिखाने वाले ‘दादा’ यानी सौरभ गांगुली की टीम हार गई है। वह मुकाबला जिस पर भारतीय क्रिकेट का सुनहरा भविष्य लिखा जाना था। टूर्नामेंट के दौरान भारतीय टीम का प्रदर्शन शानदार रहा था। पूरी टीम आत्मविश्वास से भरी थी। खिताबी मुकाबले में जैसे ही सौरभ गांगुली मैदान पर टॉस के लिए उतरे टीवी पर टकटकी लगाकर बैठे दर्शक भारत के टॉस जीतने की कामना करने लगे।
भारतीयों की दुआओं ने काम किया और भारत टॉस जीतने में कामयाब रहा। दर्शक खुश थे। इसी बीच सौरभ गांगुली ने पहले गेंदबाजी का फैसला लेकर सभी को चौंका दिया। असल में पहले गेंदबाजी का फैसला गांगुली ने इसलिए किया था, क्योंकि मैच से पहले सुबह बरसात हुई थी। ऐसे में गांगुली को उम्मीद थी कि पिच की नमी गेंदबाजी में मददगार रहेगी। गांगुली को भरोसा था कि अगर सही जगह पर गेंदबाजी की जाएगी, तो वह जल्द ही ऑस्ट्रेलिया की ओपनिंग जोड़ी को आउट करने में कामयाब रहेंगे। हालांकि, उनका यह दांव उल्टा पड़ गया। भारतीय गेंदबाज बेअसर साबित हुए। परिणामस्वरुप ऑस्ट्रेलिया 359 का बड़ा स्कोर बनाने में सफल रहा। माना जाता है कि गांगुली का यह फैसला ही टीम की हार प्रमुख कारण बना।
आशीष नेहरा डरबन में 26 फरवरी को डरबन में खेले गए इंग्लैंड के खिलाफ लीग मैच में 23 रन देकर छह विकेट लेकर हीरो बने थे। उनका यह प्रदर्शन किसी भी भारतीय का विश्व कप में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन बन गया। नेहरा ने केला खाकर मार्चा संभाला और कमाल कर दिया। दरअसल, उस मैच में नेहरा को उल्टियां भी हुई थीं, लेकिन उनकी गेंदबाजी यादगार साबित हुई। एनर्जी जुटाने के लिए नेहरा को पार्थिव पटेल ने केला क्या खिलाया, उसके बाद तो ताश के पत्ते की तरह इंग्लैंड की पारी ढहनी शुरू हो गई। 251 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए इंग्लैंड का स्कोर 52/2 था। 17वें ओवर में नेहरा ने दो विकेट चटकाए। स्कोर बदलकर 52/4 हो गया। नेहरा के तूफान के आगे इंग्लिश बल्लेबाज हथियार डालते चले गए।
19वें ओवर की आखिरी गेंद पर उन्होंने एक और विकेट लिया और 62 के स्कोर पर आधी अंग्रेज टीम लौट गई। 27वें ओवर की पहली गेंद के बाद नेहरा ने 31वें ओवर की पहली गेंद और तीसरी गेंद पर दो और विकेट लेकर इंग्लैंड की कमर तोड़ दी। 107 रनों के स्कोर पर इंग्लैंड के 8 विकेट गिर गए। बाकी के दो विकेट क्रमश: जवागल श्रीनाथ और जहीर खान ने निकाल दिए। इंग्लैंड की टीम 168 रनों पर सिमट गई। भारत ने वह मैच 82 रनों से जीत लिया। नेहरा ने कप्तान नासिर हुसैन (15), एलेक स्टीवर्ट (0), माइकल वॉन (20), पॉल कोलिंगवुड (18), क्रेग व्हाइट (13) और रॉनी ईरानी (0) के विकेट लिए। नेहरा मैन ऑफ द मैच रहे। इस विश्व कप में दिग्गज ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज शेन वॉर्न को डोपिंग का दोषी पाया गया। इसके बाद उन्हें टूर्नामेंट के बीच में ही स्वदेश भेज दिया गया।
2003 विश्वकप में पहली बार
पहली बार अफ्रीकी धरती पर विश्व कप का आयोजन किया गया
पहली बार इसका आयोजन आईसीसी विश्व कप के नाम से किया गया
केन्या विश्व कप के सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली गैर टेस्ट दर्जा प्राप्त टीम बनी
पहली बार इस वैश्विक टूर्नामेंट में रिकॉर्ड 14 टीमों ने भाग लिया
2003 विश्व कप की खास बातें
आठवां विश्व कप: 2003, 9 फरवरी से 23 मार्च (दक्षिण अफ्रीका/केन्या/जिंबाब्वे)
14 टीमों (ऑस्ट्रेलिया, भारत, वेस्ट इंडीज, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, इंग्लैंड, श्रीलंका, जिंबाब्वे, दक्षिण अफ्रीका, बांग्लादेश, केन्या, नाबीमिया, कनाडा, नीदरलैंड ) ने लिया था भाग
54 मैच खेले गए पहली बार टूर्नामेंट के इतिहास में, 43 दिन तक, तीन देशों के 15 स्टेडियमों में
23 विकेट सर्वाधिक श्रीलंका के चमिंडा वास ने दस मैचों में 14.39 की औसत से झटके थे
673 रन सर्वाधिक भारत के सचिन तेंदुलकर ने 11 मैचों 61.18 की औसत से बनाए थे।