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आप माता पिता से अधिक शिक्षित हो जायें, उनसे अधिक ज्ञान अर्जित कर लें किन्तु इससे माता पिता का महत्व आपके जीवन में कम नहीं हो जायेगा

सूर्योदय डेस्क : वैसे तो नारी के कई रूप हैं जैसे माँ, बहन, बेटी, बहु एवं सास लेकिन माँ का रूप नारी की गरिमा को ज्यादा बढ़ाने वाला है। माँ त्याग, बलिदान, क्षमा, धैर्य, ममता की प्रतिमूर्ति होती है और यह सब सद्गुण ही उसके आभूषण भी होते हैं। प्रसव पीड़ा का ज्ञान होते हुए भी माँ अपने गर्भ में पल रहे शिशु को इस संसार में आने की उत्सुकता से प्रतीक्षा करती है। यहीं से माँ की ममता का अध्याय आरम्भ होता है।जन्म लेने के उपरांत शिशु जिसके साथ सबसे अधिक समय व्यतीत करता है वो माँ ही होती है। माँ ही शिशु को चलना, बोलना इत्यादि प्रारम्भिक शिक्षा देती है अतः सर्वप्रथम माँ ही बच्चे की गुरु बनती है साथ ही जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पाठ अपनी अनुभव की किताब से माँ ही सिखाती है। किस व्यक्ति या वस्तु के प्रति बच्चे का कैसा दृष्टिकोण होना चाहिए, कैसे लोगों का आदर सम्मान करना है यह भी माँ ही बताती है। धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों का ज्ञान भी सर्वप्रथम माँ से ही मिलता है। इस प्रकार गुरु होना भी माँ के चरित्र का एक पहलू है।

 बच्चे के पालन पोषण के साथ उसके चरित्र निर्माण का बड़ा दायित्व भी माँ के कंधों पर ही होता है। विद्वानों ने इसी माँ की कोख की तुलना एक देवालय से की है जिससे एक निष्कलंक एवं निष्पाप जीव इस संसार में पदार्पण करता है। माँ अपनी संतान पर कभी ममता का कोष ख़ाली कर देती है तो कभी वही माँ गलती करने पर सख्ती से डांट भी देती है तो कभी बच्चे रूठ जायें और खाना नहीं खायें तो माँ बच्चे को मना कर पहले उसे खिला कर फिर खुद खाना खाती है।
माँ चाहे मनुष्य रूप में हो, पशु हो या पक्षी हो वो स्वयं से पहले स्वयं की संतान की बारे में सोचती है जैसे एक चिड़िया बड़ी मुश्किलों से खोजकर लायी भोजन सामग्री को मोह एवं ममतावश अपने बच्चों के मुंह में डाल देती है और स्वयं से पहले अपनी संतान का पेट भरने की सोचती है यही त्याग और तपस्या की पराकाष्ठा है। हमारे देश में नदी, धरती, प्रकृति एवं देशभूमि को माँ की ही भांति देखते हुए उसका आदर सम्मान किया जाता है ऐसा कदाचित इसी कारण से है कि धरती, नदी, प्रकृति इत्यादि में भी माँ जैसे ही सहनशीलता एवं त्याग जैसे गुण देखे जाते हैं।
माँ के क्रोध में भी करूणा है और मौन में भी ममता है जिस प्रकार एक बीज अपने भीतर एक बहुत बड़े वृक्ष को संजोये रहता है जो मिट्टी, हवा, पानी का संयोग होते ही धीरे धीरे दृष्टिगोचर होने लगता है ठीक उसी तरह एक नारी के भीतर छुपा ममता का अपार भंडार भी माँ बनते ही धीरे धीरे छलकने लगता है। माँ हमें जीवन के हर मोड़ पर सहारा देती है, कभी खाली नहीं लौटाती लेकिन कुछ लोग अज्ञान और अहंकारवश माता पिता की इस त्याग और तपस्या को भूल उनका साथ उस समय छोड़ देते हैं जब उन्हें आपकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है किन्तु ऐसा करने वाले को भी एक न एक दिन ऐसा ही दिन देखना पड़ता है।
हो सकता है की आप माता पिता से अधिक शिक्षित हो जायें, उनसे अधिक ज्ञान अर्जित कर लें किन्तु इससे माता पिता का महत्व आपके जीवन में कम नहीं हो जायेगा भले ही आपको बड़े होकर माता पिता की सलाह एवं सुझाव सुनना पसंद ना आये लेकिन ये सदैव स्मरण होना चाहिए कि जब हमें कुछ भी नहीं आता तो ये माता पिता ही थे जिन्होंने हमें हर पाठ हँसते हँसते सिखाया वो भी एक नहीं कई बार। आपको चाहिए कि माता पिता का आपके जीवन में क्या स्थान है, उनका आपके लिए क्या महत्त्व है इसे आप समय समय पर उनके सामने प्रकट करें। माता पिता की सलाह एवं सुझाव को बेकार कहकर उसे ना ठुकराएं बल्कि शांति से इस पर उनके साथ चर्चा करें।
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