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पाम तेल से बचना इतना मुश्किल क्यों है?

ये दुनिया का सबसे लोकप्रिय वेजिटेबल तेल है और रोज़मर्रा में इस्तेमाल होने वाले कम से कम 50 फ़ीसदी उत्पादों में मौजूद होता है. साथ ही औद्योगिक प्रयोगों में भी इसका इस्तेमाल अहम है।

हो सकता है आज आपने शैंपू में इसका इस्तेमाल किया हो या फिर नहाने के साबुन में, टूथपेस्ट में या फिर विटामिन की गोलियों और मेकअप के सामान में, किसी न किसी तरह आपने पाम तेल का इस्तेमाल ज़रूर किया होगा।

जिन वाहनों में आप सफ़र करते हैं, वो बस, ट्रेन या कार जिस तेल से चलती हैं, उनमें पाम तेल भी होता है। डीजल और पेट्रोल में बायोफ्यूल के अंश शामिल होते हैं जो मुख्य तौर पर पाम तेल से ही मिलते हैं।

यही नहीं, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जिस बिजली से चलते हैं, उसे बनाने के लिए भी ताड़ की गुठली से बने तेल को जलाया जाता है। इसी वजह से सरकार और उद्योगपति भी पाम तेल के विकल्प तलाशने के दबाव में हैं. लेकिन इस जादुई उत्पाद का विकल्प खोजना आसान नहीं है।

ब्रिटिश सुपरमार्केट चेन आइसलैंड को साल 2018 में तब सराहना मिली, जब उसने घोषणा की थी कि वो अपने प्रोडक्ट से पाम तेल को हटाएगा। हालांकि, कुछ उत्पादों से पाम तेल को हटाना इतना मुश्किल रहा कि कंपनी ने उन पर अपना ब्रैंड नाम भी नहीं लिखा।

अमरीका में पाम तेल की बड़ी ख़रीदार और नामी फूड कंपनी जनरल मिल्स को भी इसी मुश्किल से गुजरना पड़ा। ईंधन के तौर पर पाम तेल का इस्तेमाल भी एक बड़ा मुद्दा है।

रसोई घर से लेकर बाथरूम तक इस मौजूदगी के बावजूद 2017 में यूरोपियन यूनियन द्वारा आयात किया गया आधा तेल ईंधन के लिए इस्तेमाल किया गया था।

हालांकि, 2019 में यूरोपियन यूनियन ने ऐलान किया था कि पाम ऑयल और अन्य खाद्य फसलों से निकलने वाले बायोफ्यूल का इस्तेमाल बंद किया जाएगा क्योंकि इसके उत्पादन से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में पाम तेल के इतने इस्तेमाल के पीछे इसकी ख़ास केमिस्ट्री है। पश्चिमी अफ्ऱीका में बीजों से निकलने वाला पाम तेल पीला और गंधहीन होता है, जो खाने में इस्तेमाल के लिए दुरुस्त है।

पाम तेल का मेल्टिंग पॉइंट अधिक है और इसमें सैचुरेटेड फैट भी ज़्यादा होता है। इसी वजह से यह खाते समय मुंह में घुलता है और मिठाई वगैरह बनाने के लिए मुफ़ीद है।

कई अन्य वनस्पति तेलों को कुछ हद तक हाइड्रोजनेटेड करने की ज़रूरत पड़ती है। हाइड्रोजनेटेड वो प्रक्रिया है, जिसमें तरल फैट में हाइड्रोजन मिलाकर उसे ठोस फैट बनाया जाता है।

इस प्रक्रिया में फैट में हाइड्रोजन अणुओं को रसायनिक तरीक़े से मिलाता जाता है, जिससे स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचाने वाला ट्रांस-फैट तैयार होता है। अपनी ख़ास केमिस्ट्री की वजह से पाम तेल अधिक तापमान पर भी बच जाता है और ख़राब नहीं होता है. पाम तेल से बनाए गए उत्पाद भी ज़्यादा दिनों तक चलते हैं।

पाम तेल और इसकी प्रॉसेसिंग के बाद बचे गूदे, दोनों को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। पाम के छिलकों को पीसकर कंक्रीट बनाया जा सकता है। पाम फाइबर और गूदा जलने के बाद बची राख को सीमेंट के तौर पर उपयोग किया जा सकता है।

ख़राब मिट्टी और ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में भी पाम के पेड़ आसानी से उगाए जा सकते हैं और ये किसानों के लिए फ़ायदे का सौदा है। इसी से पता चलता है कि पिछले कुछ बरसों में पाम के पेड़ उगाए जाने वाला इलाक़ा इतना कैसे बढ़ गया है।

पाम तेलका विकल्प क्या…?

इस सिलसिले में अभी तक अपनाया गया सबसे आसान रास्ता पाम तेल जैसे गुणों वाले अन्य वनस्पति तेल खोजना रहा है। खाद्य पदार्थों और सौंदर्य प्रसाधनों के वैज्ञानिक शे बटर, जोजोबा, कोकम, इलिप, जटरोफा और आम की गुठलियों जैसे विकल्प भी तलाश रहे हैं।

ईंधन के क्षेत्र में अलसी एक बेहतर विकल्प हो सकता है। अलसी की कुछ प्रजातियों से निकले तेल को ‘बायोक्रूड’ में बदला जा सकता है. बायोक्रूड पेट्रोलियम के विकल्प के तौर पर उपयोग में आने वाले तेल को कहते हैं।

ऐसे बायोक्रूड को डीज़ल, जेट के ईंधन और भारी शिपिंग तेल की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है। हो सकता है कि यह जितना ताक़तवर लग रहा है, उतना न हो, क्योंकि दुनिया की अधिकांश तेल फील्ड यानी जहां से तेल निकाला जाता है, उसमें अलसी के जीवाश्म ही हैं।

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