Breaking News

Eid ul Adha 2019 : नामज के बाद ही की जाती है कुर्बानी, जाने कैसे हुई इसकी शुरुआत

Eid ul Adha 2019 ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार ईद-उल-फित्र के लगभग दो महीने 10 दिन यानी 70 दिनों के बाद मनाया जाता है। इस साल ईद उल अजहा 2019 (ईद उल जुहा 2019) 12 अगस्त दिन सोमवार को मनाई जाएगी। ईद का त्योहार इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। ईद ईद उल अजहा की नामज के बाद ही कुर्बानी की जाती है। आईए जानते हैं कुर्बानी का सिलसिला कैसे शुरू हुआ।

कुर्बानी (कुरबानी) की असल वह हुक्म है जो अल्लाह तआला ने अपने खलील इब्राहीम अलैहिस्सलाम को दिया था जिसकी तफसील यह है कि नमरूद जालिम की आग से जब अल्लाह तआला ने हजरत इब्राहिम खलीलुल्लाह को बचा लिया और उसके कुर्ब व अजाब से आप को महफूज रखा तो उस वक्त हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा मैं हिजरत करके अपने रब की तरफ मुकद्दस सर जमीन में जाऊंगा, वह मुझे दीन की हिदायत फरमायेगा। दुनिया में दीने इलाही के लिए सबसे पहली हिजरत करने वाले हजरत इब्राहीम ही थे।

हजरत इब्राहीम अपनी बीवी सारह को लेकर वतन से चल दिए अरज मुकद्दस में पहुंचे तो अल्लाह तआला से दुआ की और अर्ज किया ऐ परवरदिगार मुझे एक सालेह बेटा अता फरमा, अल्लाह तआला ने उनकी दुआ कबूल फरमाई और एक जी फहम बेटे की बशारत दी। यह लड़का सारह का फरजंद इसहाक था। इस सिलसिले में आगे चलकर हजरत मुरशदी व मौलाई जनाब मुसन्निफ ने खुद बताया है कि जबिहुल्लाह इस्हाक नहीं थे बल्कि इस्माईल थे, तमाम मुफस्सरीन का इस पर इत्तेफाक है कि यह फरजंद ईसमाल थे इस्हाक नहीं थे। जब हजरत इसहाक आप से आप पहाड़ पर चढ़ने के काबिल हो गए तो हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने एक दिन उनसे कहा कि ऐ बेटे! मैंने ख्वाब में देखा है कि तुमके जिबह कर रहा हूं।

यानी मुझे यह हुक्म दिया गया है कि मैं तुम्हे अल्लाह की राह में जिबह कर दूं, यह हुक्म उस नज्र के सिलसिले में था जो आपने मांनी थी। ऐ फरजंद अजीज! बताओ तुम्हारी इस सिलसिले में क्या राय है? फरजंद ने अर्ज किया कि ऐ अब्बा जान! आपको जब रब ने हुक्म दिया है उसको बजा लाइये और अपने रब इताअल फरमाइये! गोया इसहाक समझ गए कि यह अल्लाह का हुक्म है इसीलिए उन्होंने यूं कहा कि जो हुक्म किया गया है वैसा ही कीजिए, यह नहीं कहा कि जो ख्वाब में देखा है उसके मुताबिक कीजिए। हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मुतवातिर तीन रात यही ख्वाब देखा था और जिबह (फरजंद) से पहले आपने रोजा भी रखा था और नमाज भी पढ़ी थी।

हजरत इसहाक ने जब यह कहा कि आपको जो हुक्म दिया गया है उसको बजा लाइये तो उसके साथ यह भी कहा कि आप इन्शाअल्लाह जिबह होने पर मुझे साबिर पाएंगे। जब उन दोनों हस्तियों ने अल्लाह के हुक्म को तालीम कर लिया यानी हुक्मे इलाही की इताअत आमादा हो गए तो परेशानी बल पर हजरत इब्राहीम ने हजरत इसहाक को पछाड़ दिया और पेशानी के बाल पकड़कर उनको जिबह करने लगे और अल्लाह तआला पर उन दोनों की सच्चाई अमलन जाहिर हो गई। तो अल्लाह तआला ने पुकार कर फरमाया ऐ इब्राहीम तुमने बेटे को जिबह करने के ख्वाब को सच कर दिखाया। अब तुम अपने बेटे को जिबह करने के बजाए मेंढा जिबह करो।

अल्लाह तआला ने फरमाया: और हमने उसके बदले में इब्राहीम को कुर्बानी का एक अजीम (बड़े रूतबा बाला) जानवर दे दिया। उस मेंढे का नाम वजीर था जो यह जन्नत में चालीस साल तक चरने वाले मेंढों में से था। बाज लोगों का कौल है कि यह वही मेंढा था जो हजरत आदम के बेटे हाबील शहीद ने कर्नबानी किया था। यह मेंढा जन्नत में चरा करता था। अल्लाह तआला का इरशाद है कि हम नेकोकारों को ऐसी ही जजा देते हैं। हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म (जिबहे फरजंद) की इताअत की और नेक अमल बजा लाये। उसके बदले में अल्लाह ने उनको बेहतरीन जजा दी। बाज उलमा व मोहक्ककीन का यह कौल भी है कि हजरत इब्राहीम को अल्लाह तआला ने दिस फरजंद के जिबह करने का हुक्म दिया ।

वह हजरत इसहाक नहीं थे बल्कि हजरत इस्माईल थे यही कौल क़वी है। इसके बाद इरशाद फरमाया: यह बिला शुबहा यह खुली हुई रहमत थी जो अल्लाह ने हजरत इब्राहीम के फरजन्द से दरगुजर फरमाई और उसके फिदया में दुम्बा दे दिया। बाज़ असहाब ने कहा कि खलीलुल्लाह ने जब अपने फरजंद के हल्क़ पर छुरी फेरनी चाही तो निदा आई इब्राहीम लड़के को छोड़ दो क्योंकि हमारी मुराद फरजंद को कुर्बान करना न थी बल्कि मुराद यह थी कि फरजंद की मोहब्बत से दिल खाली हो जाए। बाज किताबों में आया है कि हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जब बेटे को ज़िबह करना चाहा तो दिल में कहा परवरदिगार अगर यह ज़बीहा दूसरे के हाथ से हो जाता तो बेहतर था। अल्लाह तआला ने फरमाया यह काम तुम्हारे ही हाथों होना है ।

उस वक्त फरिश्तों ने अर्ज किया कि इलाहल आलमीन! इस इरशाद का मौजिब और सबब क्या है? हक़ अल्लाह तआला ने फरमाया ताकि मेरे सिवा किसी और की मोहब्बत खलील (इब्राहीम) के दिल में न रहे क्योंकि मैं मोहब्बत में किसी का शरीक होना पसंद नहीं करता। हजरत इब्राहीम ने बेटे से मोहब्बत को तो इस इम्तेहान में मुब्तला हुए, हजरत याकूब अलैहिस्सलाम ने हजरत यूसुफ से मोहब्बत की तो यूसुफ चालीस बरस उनसे गायब रहे और हजरत याकूब को यूसुफ की जुदाई की तकलीफ बरदाश्त करना पड़ी। हमारे पैग़म्बर हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने हजरत हसन और हजरत हुसैन से मोहब्बत फरमाई जब यह मोहब्बत दिल में जागुजी हुई तो जिब्रील ने आकर अर्ज किया कि इनमें से एक को जहर दिया जाएगा और दूसरे को शहीद किया जाएगा मतलब यह है कि महबूब के साथ कोई दूसरा मोहब्बत में शरीक न हो।

Loading...

Check Also

सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविज़न ‘श्रीमद रामायण’ ‘श्री राम रथ’ लेकर कानपुर पहुंचा !

सूर्योदय भारत समाचार सेवा, कानपुर : मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्री राम के धार्मिक और साहसी ...