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श्रावणी उपाकर्म 2019: आत्मशुद्धि के लिए पवित्र नदी के घाट पर मनाया जाता है ये पर्व

हिंदू धर्म में हर त्योहार का अलग महत्व होता है। रक्षाबंधन के दिन श्रावणी उपाकर्म त्योहार भी मनाया जाता है। इस पर्व को ब्राह्मणों द्वारा सामूहिक रूप से पवित्र नदी के घाट पर मनाया जाता है। इसे पुण्य करने का दिन कहा जाता है। प्राचीनकाल में ऋषि-मुनी इसी दिन से वेदों का पाठ करना शुरू करते थे। इस दिन स्नान और आत्मशुद्धि कर पितरों और खुद के कल्याण के लिए आहुतियां दी जाती हैं। इस दिन पेड़-पौधे लगाने का भी खास महत्व होता है।
सद्कर्म का संकल्प
श्रावणी पर्व पर द्विजत्व के संकल्प का नवीनीकरण किया जाता है। उसके लिए परंपरागत ढंग से तीर्थ अवगाहन, दशस्नान, हेमाद्रि संकल्प एवं तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं। श्रावणी के कर्मकाण्ड में पाप-निवारण के लिए हेमाद्रि संकल्प कराया जाता है, जिसमें भविष्य में पातकों, उपपातकों और महापातकों से बचने, परद्रव्य अपहरण न करने, परनिंदा न करने, आहार-विहार का ध्यान रखने, हिंसा न करने , इंद्रियों का संयम करने एवं सदाचरण करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। यह सृष्टि नियंता के संकल्प से उपजी है। हर व्यक्ति अपने लिए एक नई सृष्टि करता है। यह सृष्टि यदि ईश्वरीय योजना के अनुकूल हुई, तब तो कल्याणकारी परिणाम उपजते हैं, अन्यथा अनर्थ का सामना करना पड़ता है। अपनी सृष्टि में चाहने, सोचने तथा करने में कहीं भी विकार आया हो, तो उसे हटाने तथा नई शुरूआत करने के लिए हेमाद्रि संकल्प करते हैं। ऐसी क्रिया और भावना ही कर्मकाण्ड का प्राण है।ऋषि पूजन का महत्व
ऋषि पूजन के पीछे उच्चतम आदर्श की परिकल्पना निहित है। ऋषि जीवन ने ही महानतम जीवनश्चर्या का विकास और अभ्यास करने में सफलता पाई थी। ऋषि जीवन आंतरिक समृद्धि एवं ऐश्वर्य का प्रतीक है। यह सौम्य जीवन के सुख और मधुरता का पर्याय है। आज के समाज की भटकन का कारण ऋषित्व का घनघोर अभाव है। इस पूजन से इन्हीं तत्त्वों की वृद्धि की कामना की जाती है।
प्रकृति से जुड़ाव
रक्षाबन्धन पूज्य श्रद्धास्पद व्यक्तियों अथवा कन्याओं से कराया जाता है। श्रावणी और रक्षाबन्धन की स्मृति को प्रगाढ़ करने के लिए वृक्षारोपण का भी प्रावधान है। वृक्ष परोपकार के प्रतीक हैं, जो बिना कुछ माँगे हमको शीतल छाया, फल और हरियाली प्रदान करते हैं। मानव जीवन के ये करीब के सहयोगी हैं और सदैव हमारी सेवा में तत्पर रहते हैं। अतः हमें भी इनकी सेवा तथा देखभाल करनी चाहिए।
सामूहिक कल्याण की भावना
शास्त्रोक्त मान्यता है कि अनुकूल मौसम में वृक्षारोपण करने पर अनंत गुणा पुण्य लाभ होता है। अतः श्रावणी पर्व से अपने जीवन को सत्पथ पर बढ़ाने, रक्षासूत्र द्वारा नारी के प्रति पवित्रता का भाव रखने तथा वृक्षारोपण द्वारा इन भावनाओं को क्रियाओं में परिणत करने का संकल्प लिया जाता है जो कि इस पर्व का प्राण है। इसे हम सबको पूरा करना चाहिए। इसी में हमारी पर्व परंपरा के साथ-साथ सामूहिक कल्याण निहित है।

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