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उठा बड़ा सवाल, क्या संजय सिंह के पार्टी बदलने के बाद बदलेगी अमेठी की सियासत ?

नई दिल्ली: संजय सिंह फिर भाजपा में आ गए। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि संजय के पार्टी बदलने के बाद क्या अमेठी की सियासत भी बदलेगी। संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा व पुत्र अनंत विक्रम से तीन दशक से ज्यादा वक्त से रिश्तों में चली आ रही तल्खी खत्म हो जाएगी या परिवार का टकराव भाजपा के भीतर भी नई टकराहट का बीजारोपण करेगा। संजय सिंह जिन राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा में लौटे हैं, उन्हें देखते हुए वह खुद को बदलेंगे या भाजपा नेतृत्व अमेठी के समीकरणों को बदलने की तैयारी कर रही है। ये सवाल यूं ही नहीं उठ रहे हैं। इसकी वजहें हैं। दरअसल, संजय सिंह और गरिमा व अनंत के बीच रिश्तों की कड़वाहट की मुख्य वजह संजय की दूसरी पत्नी अमिता सिंह हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में अमेठी से कांग्रेस उम्मीदवार अमिता सिंह को हराकर ही गरिमा भाजपा की विधायक निर्वाचित हुईं थीं।

चुनाव के दौरान भी दोनों तरफ से एक-दूसरे को लेकर काफी तल्खी दिखीं थीं। वहीं, अमेठी के भूपति भवन में विरासत को लेकर राजपरिवार में हुई जंग मीडिया की सुर्खियां बन चुकी है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि जिन पारिवारिक सदस्यों की एक छत के नीचे नहीं निभ पा रही है, उनकी एक ही पार्टी में कैसे निभेगी। हाल ही हुए लोकसभा चुनाव के दौरान सुल्तानपुर से भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े संजय सिंह के भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं से भी रिश्ते बहुत सहज नहीं रहे हैं। अमेठी राजघराने की सियासत समझने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संजय सिंह के सामने भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा था। इसलिए इस बार वह भाजपा में किसी उठापटक से बचना चाहेंगे। इनका कहना है कि राहुल गांधी की पराजय के बाद संजय सिंह की राजनीतिक ताकत पर से पर्दा उठ चुका है। ऐसे में उनके सामने कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था।

यह भी है कारण
हालांकि, राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। बावजूद इसके विश्लेषकों का आकलन ठीक लगता है। वर्ष 2012 में संजय सिंह की पत्नी अमिता जब अमेठी में गायत्री प्रजापति से हारीं तब संजय सिंह को बड़ा झटका लगा। उन्हें लगा कि कांग्रेस नेतृत्व उन्हें तवज्जो देना कम कर सकता है। ऐसे में उन्होंने सोचा कि कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बना लिया जाए तो उनका वजूद बना रहेगा। लगता है कि इसीलिए उन्होंने कांग्रेस के कुछ स्थानीय नेताओं पर विश्वासघात का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की। साथ ही अपनी गतिविधियों से भाजपा में जाने की हलचल मचाकर कांग्रेस नेतृत्व का ध्यान अपनी तरफ खींचा। अमेठी में हुए विश्वासघात का बदला लेने की बात कहकर उन्होंने संभवतया यह संदेश देने की कोशिश की थी कि उनकी अनदेखी अमेठी में राहुल की जीत का सिलसिला तोड़ सकती है।

यही हुआ, कांग्रेस के रणनीतिकारों ने संजय सिंह को राज्यसभा भेजकर उन्हें मना लेने में ही भलाई समझी। अब वैसी स्थिति नहीं बची थी। राहुल चुनाव हार चुके हैं और कांग्रेस संजय को कुछ देने की स्थिति में नहीं है। संजय पहले भी भाजपा में रह चुके हैं और 1998 में अमेठी से भाजपा के सांसद रहे। उनकी दूसरी पत्नी अमिता सिंह भी भाजपा के टिकट पर अमेठी से विधायक रह चुकी हैं और 2002 में भाजपा-बसपा गठबंधन सरकार में मंत्री भी रहीं। हालांकि, भाजपा-बसपा का गठबंधन टूटने के बाद 2003 में संजय और अमिता कांग्रेस में शामिल हो गए। अब ये एक बार फिर भाजपा में आ गए हैं। पर, तब और अब में काफी फर्क आ चुका है। तब गरिमा और उनके पुत्र राजनीति में सक्रिय नहीं थे। अब ये भाजपा की राजनीति में सक्रिय हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अमेठी की सियासत अब क्या रुख लेगी।

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