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Vat Punima 2019 : जाने वट पूर्णिमा की पूजा का विधान और कथा के बारें में, पति की लंबी उम्र के साथ मिलेगा संतान सुख

Vat Punima 2019 : वट पूर्णिमा कब है अगर आपको नहीं पता तो बता दें कि 17 जून 2019 यानी सोमवार को वट पूर्णिमा 2019 का व्रत रखा जायेगा। ज्येष्ठ मास के कारण इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा 2019 भी कहा जाता है। वट पूर्णिमा के व्रत को मुख्य रूप से गुजरात , महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में मनाया जाता है। वट पूर्णिमा का व्रत सावित्री व्रत की तरह ही मनाया जाता है। इस दिन सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। वट पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष की पूजा का विधान है। उतर भारत में इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। अगर आप भी वट पूर्णिमा का व्रत करना चाहती हैं और आपको वट पूर्णिमा के उपाय और वट पूर्णिमा की कथा के बारे में नहीं पता है तो आज हम आपको इन सब के बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं वट पूर्णिमा के उपाय और वट पूर्णिमा व्रत कथा के बारे में…

वट पूर्णिमा के उपाय
1.जिन कन्याओं की शादी में रूकावट आ रही हैं । वह वट पूर्णिमा वट के वृक्ष में कच्चा दूध चढ़ा कर गीली मिट्टी से तिलक करें।
2.पितृ बाधा के लिए वट पूर्णिमा के दिन किसी नदी किनारे या धार्मिक स्थल पर बरगद का पेड़ लगांए।
3.बरगद के पेड़ पर रोज जल चढ़ाने से घर में खुशियों का वास होता है।
4.वट पूर्णिमा के दिन सुहागन स्त्रियों को कच्चे सुत को हल्दी से रंगकर तीन बार वट वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए।
5.वट पूर्णिमा के दिन सुहागन स्त्रियां अगर कच्चा दूध वट के वृक्ष पर चढ़ाती हैं तो उनकी संतान संबंधी सभी समस्यांए समाप्त हो जाती है।
6.वट पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष को हाथ के पंखे से हवा करें । इसके बाद उसी पंखे से घर आकर पति पर हवा करने से सारी नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं
7.वट पूर्णिमा के सावित्री और सत्यावान की कथा सुनना काफी शुभ रहता है।
8.वट पूर्णिमा के दिन शाम के समय मीठा जरूर खांए.
9.बरगद के पत्ते को अपने बालों में लगाने से भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु तीनों का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
10.वट पूर्णिमा के दिन सुहागन स्त्रियों को पति के साथ-साथ घर के बुजुर्गो का आर्शीवाद अवश्य लें।

वट सावित्री व्रत कथा: पौराणिक व्रत कथा के अनुसार कहा जाता है कि सावित्री के पति अल्पायु थे, एक दिन देव ऋषि नारद सावित्री के पास आए और कहने लगे की तुम्हारा पति अल्पायु है। आप कोई दूसरा वर मांग लें। पर सावित्री ने कहा- मैं एक हिंदू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं। इसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है। सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं। उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है।

सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के ये तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा। सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया।

वट सावित्री अमावस्या के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन और व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की ही मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है। सावित्री के पतिव्रता धर्म की कथा का सार यह है कि एकनिष्ठ पतिपरायणा स्त्रियां अपने पति को सभी दुख और कष्टों से दूर रखने में समर्थ होती है। जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से छुड़ा लिया था। इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति भी वापस दिला दी। उसी प्रकार महिलाओं को अपना गुरु केवल पति को ही मानना चाहिए। गुरु दीक्षा के चक्र में इधर-उधर नहीं भटकना चाहिए। वट अमावस्या का उत्तराखंड, उड़ीसा, बिहार, उत्तरप्रदेश आदि स्थानों पर विशेष महत्व है। अत: वहां की महिलाएं विशेष पूजा-आराधना करती हैं। साथ ही पूजन के बाद अपने पति को रोली और अक्षत लगाकर चरणस्पर्श कर मिष्ठान प्रसाद वितरित करती है।

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